Monday, July 21, 2008

सत्य तो बहुत मिले...

They say . . it's all inside. . .everything is within the infinite capacities of human mind and i came across this string of beautifully woven thoughts . . .

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खोज़ में जब निकल ही आया
सत्य तो बहुत मिले . . .


कुछ नये कुछ पुराने मिले
कुछ अपने कुछ बिराने मिले
कुछ दिखावे कुछ बहाने मिले
कुछ अकड़ू कुछ मुँह-चुराने मिले
कुछ घुटे-मँजे सफेदपोश मिले
कुछ ईमानदार ख़ानाबदोश मिले . . .


कुछ ने लुभाया
कुछ ने डराया
कुछ ने परचाया-
कुछ ने भरमाया-
सत्य तो बहुत मिले
खोज़ में जब निकल ही आया . . .


कुछ पड़े मिले
कुछ खड़े मिले
कुछ झड़े मिले
कुछ सड़े मिले
कुछ निखरे कुछ बिखरे
कुछ धुँधले कुछ सुथरे
सब सत्य रहे
कहे, अनकहे. . .


खोज़ में जब निकल ही आया
सत्य तो बहुत मिले. . .
पर तुम
नभ के तुम कि गुहा-गह्वर के तुम
मोम के तुम, पत्थर के तुम
तुम किसी देवता से नहीं निकले:
तुम मेरे साथ मेरे ही आँसू में गले
मेरे ही रक्त पर पले
अनुभव के दाह पर क्षण-क्षण उकसती
मेरी अशमित चिता पर
तुम मेरे ही साथ जले . . .


तुम-
तुम्हें तो
भस्म हो
मैंने फिर अपनी भभूत में पाया
अंग रमाया
तभी तो पाया . . .

खोज़ में जब निकल ही आया,
सत्य तो बहुत मिले-
एक ही पाया ! ! !

- "अज्ञेय"

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गुहा-गह्वर ---> Cave

अशमित चिता ---> pyre,whose funeral is yet to take place . . . appropriately, according to the Hindu dharma...

भभूत ---> ashes from shrines with which Hindu worshippers smear their foreheads



Posted here for the indivisuals who ask questions from themselves and seek answers !