Monday, September 10, 2018

वो शाम

ठंड से काँपता सूरज आज
अपने घोंसले में नही आया
गर्म भावनाओं के ईंटो से बने घर
जाने क्यों उतरा चला गया
लगता था
उसका इंतज़ार हो रहा था बेसब्री से..
तभी छत दरवाजा खुला भी रखा था
बेचारा हल्के नारंगी रंग से बंधा हुआ
चुपचाप..काँपता हुआ सा..
खुले दरवाजे को खटखटाता रहा
कुछ देर में एक अनोखी सी आवाज़ सुनी
अन्दर गया तो देखा कुछ जलते से कडाहे
एक आग की भट्टी भी साथ लगा रखी थी
वही अनोखी आवाज़ कहे जा रहे थी
क्या मानोगे मेरी बात
आज जो गरमी है थोडी बहुत है तुम्हारे पास
दे दो उधर...
हम पिघलाकर निखार देंगे तुम्हे
डरता सूरज....उसने भरोसा किया
हामी भी भर दी

और गुलाबी सा उजियारा फ़ैल गया
शाम का नाम जिसे दिया ..