Saturday, October 18, 2008

अचानक....... ऐसे ही



एक सपना बन
कुछ उन्नींदे से लम्हो के भीतर छुप कर
हाँ, शायद तकिये के सिरहाने
मिलोगे तुम...
अचानक ....... ऐसे ही


कांच के झुमकों पे
ठहरे हुए तुम्हारे लम्स को
हाँ,शायद पिघला कर
गर नीचे ला सकूँ
वही तो ठहरे हुए मिलोगे तुम
अचानक....... ऐसे ही


एक धूल भरे बस स्टैंड पर
थोड़ा सा झुके हुए
आँखों में गई गर्द को धमकाते हुए
और आने वाली हर बस का इंतज़ार करते हुए
हाँ...शायद वही तो मिलोगे तुम
अचानक ....... ऐसे ही


हर लफ्ज़...हर सफ्हे में
पंख लगाए उड़ती हुई बारिश की बूंदों में
सोये हुए हर एक लम्हे में
रुकी हुई नज़्म में
जाते हुए कुछ वादों में
और चुनिन्दा से ख्यालों में


हाँ...शायद मिलते रहोगे तुम
अचानक....... ऐसे ही





उन्नींदे ---- Sleepy
लम्स ----- touch
सफहा -----paper

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This nazm trascends from a dream in the first para to the reality in the third para.....written for that transformation