Monday, November 03, 2008

Everyday is a winding road....



एक पन्ना. . . एक दिन . . . और चन्द ख़ास लोग . . . .


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आजकल ये शहर कुछ ठंडा पड़ने लगा है . . और उसके बचाव में मेरे पास दो ही सामान है,एक ३ साल पुँराना गर्म कम्बल और दूसरा मेरा two bedroom without kitchen flat. . .सुबह जब अनमने ढंग से उठते ही बिस्तर के पास रखा remote जब Vh1 classics लगाता है और Sheryl Crow को "everyday is a winding road . . . everyday is a faded sign. . ." आधी खुली आँखों से गाता देखता हूँ तो ये और पुख्ता हो जाता है कि सच में ठण्ड बढ़ चुकी है और दिन भी इसी गाने के बोल जैसा ठंडा ही रहेगा . . . आज तो सूरज भी बिस्तर से बाहर नही आता लग रहा है


चाय बनाने की कोशिश में आलस दबे पाँव सामने आती है ....बशीर भाई याद आते हैं और फ़िर आनन फानन में उनके ढाबे पे पहुँचता हूँ , सिर्फ़ इशारे से उनको हाफ कप दिखाता हुआ....मेरे कुछ कहने से पहले ही एक आमलेट और हाफ चाय हाथ में आ जाती है . . . थोडी सी ठण्ड जाती हुई दिखती है... फ़िर भी वही गूंजता है--"everyday is a faded sign". . . शुरू होने वाले दिन के लिए शायद घबराहट नही,गुस्सा सा है ... एक कंप्यूटर , उसके अन्दर उंघते चन्द हज़ार लाइंस के कोड . . . फ़िर से एक मुखौटा ओढ़ना होगा शाम तक . . . उसी एयरकंडीशनर में . . . उसी छः मंजिला बिल्डिंग के किसी कोने में, कुछ सोती ख्वाहिशों के बीच . . . दिन में ठण्ड का डर घेरा बनाता हुआ आँखों के सामने घूमता है. . . .


ढाबे से वापस लौटकर देखता हूँ तो घर के सामने धोबी अपनी दुकान सजाता हुआ मिलता है. . . दो डंडो पे एक प्लास्टिक का बनाया छप्पर उसकी रोज़ी है . . . अभी अभी बच्चे का बाप बना है सो ज्यादा जिम्मेदार दिखता है . . . पहले से ज्यादा काम करता हुआ मिलता है और अब शराब पीने के लिए पैसे भी नही मांगता, कुछ दिनों से . . .


सूरज धीरे धीरे सीढिया चढ़ रहा है बादलों की . . . . और घर के ही सामने से कूड़ा-गाड़ी घंटी बजाती हुई निकलती है. . .पीछे उसके आवारा कुत्ते इस आस में कि किसी के घर कुछ अच्छा बना हुआ हो और गाड़ी वाले की कृपा हो तो बढ़िया खाने को मिल जायेगा . . उनका आवारा मसीहा उन्हें हर दिन जरूर कुछ कुछ खाने को देता है. . . फ़िर बाद में यही जानवर गली के मुहाने पे धूप सेंकते हुए मिलते हैं. . . बेवजह एक मुस्कराहट मेरे चेहरे पर भी आ जाती है . . . अटकी हुई जो थी अब तक कही शायद. . .


सूरज साहिल से फलक तक जा पहुँचा है और पास के स्कूल में जाते बच्चे भी . . . कुछ के drivers आते साथ हैं और कुछ खुशनसीब हैं जो अपने बुजुर्गो के साथ उनकी उंगली थामे पहुचते हैं . . . ठण्ड कम होती हुई जान पड़ती है . . . एक ऐसा दिन जो बिल्कुल अनजाना मालूम हो रहा था अब किसी पुराने दोस्त के जितना जाना पहचाना दिखता है . . . .


कमरे में वापस पहुंचता हूँ तो Sheryl Crow गा चुकी हैं और आशा जी उनकी जगह ले लेती हैं. . ."रोज़ रोज़ आँखों तले, एक ही सपना पले ". . . . . सच . . . यही सच है . . .

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एक छोटा सा पन्ना अलग किया है . . . . उन्ही कुछ लोगो के लिए जिनसे मै रोज़ मिलता हूँ. . .

3 comments:

upasanaa said...

ye post padh ke do sher yaad aaya.. maine hi kahe the...

"wo maah-o-shams ke phere wo dhoop chaanv ke khel,
panaah raah mein de wo shajar nahi aataa"

"thaki hui si ye saasein thamein nahi jab tak,
kisi hayaat mein tab tak sifar nahi aataa.."

good one boss!! keep it up and happening!

kunalc said...

suraj ke tukde sametne ki achhi koshish hai dost......the sum here is greater than the parts.....n tht remains the beauty with life.....
achha laga padhke.....write often.....

Abhik said...

Lovely. A beautiful commentary on winter and how cold it can get through life in general. There are two things I especially like here. One is how the start and end intertwine. How Sheryl Crow and Asha convey one and the same meaning. What I like best is how the content and the tone relate to each other. A cold observation of everything around us. While the events may be relevant for any time of the year, anyone who reads this would inevitable relate them to winter.