Sunday, December 14, 2008

शख्स, जो मुझे मेरे होने का अहसास दिलाता रहा. . .


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पिछले ३ दिन मेरे लिए अजीब उलझने ले आ रहे थे. . .किनारे कैफे जहाँ मै अकसर चाय पीने,sunset देखने या फ़िर रात के खाने के लिए जाता हूँ,वहां जाने से अब जी घबराता है. . . सिहरन होती है. . फ़िर भी अब वहाँ ज्यादा जाने लगा हूँ . . और हर बार बेचैनी पहले से दोगुनी हो जाती है. . .

तीन दिनों पहले होटल के बाहर चबूतरे पर , मै economic times के पन्ने उलट रहा था . . . सुबह की धूप मेरे ठीक पीछे से जाकर गुदगुदा रही थी . . .सब कुछ एक idyllic setting जैसा था . . . तभी पास ही एक बुढिया बैठी दिखती है. . .एक मैली सी हरी साड़ी पहने,पुराना पूरी बांह का creamish स्वेटर और एक शाल ओढे ....उसकी साड़ी पर बने फूल धूल से मुरझा चुके थे. . . और हाँ,वो आप से ही बातें कर रही थी. . .

चाय की चुस्की लेते हुए मै उससे पूछता हूँ . . . . . . " चाय पियोगी?"
वो कुछ नही बोलती है. . .उसकी दो छोटी आन्खो और झुर्रियों में थोडी हरक़त होती है. . .मुझे अपनी हथेली खोल के दिखाती है. . .उसमे एक रूपये का सिक्का होता है. . .होटल के छोटू को मै फ़ौरन कहता हूँ कि इसको एक हाफ टी दे दो. . .छोटू दौड्ता हुआ कांच के कप में चाय लाके उसे थमा देता है. . .उसकी दोनों आन्खे फ़िर से मुझे बोलती हैं. . शायद शुक्रिया . . . और मेरे देखते ही देखते वो आखिरी बूँद तक पी जाती है. . .


मुझे अभी भी इस बुढिया के बारे में कुछ नही मालूम है. . .होटल के अन्दर नाश्ता करते हुए देखता हूँ कि
कुछ बडबडा रही है. . .कभी पास के पार्क में खेलते बच्चो को देख कर. . .तो कभी फ़िर आसपास जाने वालो को . . सोचता हूँ कि शायद उसे अपने बच्चो कि याद रही होगी .......और ये रास्ता भटक चुकी है अपने घर का .....

मुझे सिहरन होने लगती है.........जब भी नज़रें उठा के उसकी ओर देखता हूँ,ऐसा लगता है जैसे अपनी ही बेबसी ...... अपने कुछ न कर पाने को देख रहा हूँ. . . . अपनी ही आँखों से

ऑफिस जाने का टाइम हो रहा है और मै फ़िर से नज़रें बचा के उसे देखते हुआ --- अपनी दुनिया में चला जाता हूँ. . .

पूरे दिन सिर्फ़ एक ही बात गूंजती है मन में. . .70s के singer Dylan के शब्द. . ऑफिस के किसी भी काम में जरा भी interest नही आ पाता. . . . . बार बार वही बुढिया जैसे मुझे मेरे होने का अहसास दिलाती सामने जाती है

"How many times can a man turn his head, and pretend that he just doesn't see
How many times can a man turn his head, and pretend that he just doesn't see
The answer, my friend, is blowin' in the wind
The answer is blowin' in the wind..........."


शाम को फ़िर वही बुढिया उसी जगह पर बैठी मिलती है . . इस बार गोलगप्पे वाला उसे कन्नड़ में गाली दे रहा होता है. . . . .उसको वहाँ से जाने को कहता है जहाँ उसके customers आते हैं. . .वो कुछ भी नही बोलती है . . .सिर्फ़ लल्चायी नजरो से कभी होटल पर , कभी गोलगप्पे को देखती है. . .मै सर झुकाए चुपचाप अपने घर को निकल जाता हूँ

मै काँप रहा हूँ........अपने खोखलेपन से ..... फ़िर भी रात को उसी होटल जाता हूँ . . .सिर्फ़ ये देखने कि बुढिया वहीँ बाहर ठण्ड में तो नही सो रही है......सुकून मिलता है कि वो पार्क में सामने बने एक खुले कमरे में चली गई है. . .किसी से बिना कुछ बोले,वो सिर्फ़ इधर से उधर भट्कती है. . .मै होटल वाले से कहता हूँ कि इसको कुछ खाने के लिए दे देना. . .वो हँस देता है. . .इसके आगे मै भी कुछ नही कह पाता. . . अभी मेरा सोचना बंद हो चुका है. . .बस चुपचाप ही रहता हूँ. . .जेहन में ख्याल आता है कि ऐसे कितने और बूढे होंगे जो अभी भटक रहे होंगे..इसी तरह और फ़िर आँखें गीली हो जाती हैं............

रात यहाँ ठण्ड बढ़ जाती है और सुबह ये उसकी हालत देख कर लगता है. . .चाय पीते ही फ़िर से उसकी मैली कुचली शाल को देखता हूँ और छोटू को कहता हूँ ...एक हाफ टी,इसके लिए भी . . . इस बार मालिक बोलता है बुढिया के लिए कुछ नही है . . .उसको शीशे के कप में नही दे सकते,कुछ लोग बुरा मान जायेंगे. . .मैं सारा गुस्सा एक बार में ही पी जाता हूँ. . . . . उसको देखना अब मुश्किल हो जाता है. . . . जैसे ही उसकी ओर नज़र करता हूँ,वो बार बार मुझे मेरा ही चेहरा दिखाती है. . .ऐसा लगता है जैसे आइना देख रहा हूँ . . .

मै होटल वाले को उसके चाय के पैसे दे कर जाता हूँ ,ये कहता हुआ कि प्लास्टिक कप में दे देना. . . रास्ते में सारी दुनिया ही बुरी नज़र आती है. . . लुना पर जाते तीन लोग, गाय के साथ भगवान की फोटो लेकर भीख मांगता आदमी, कूड़ा गाड़ी वाला भैया और jogging से आते कुछ बुजुर्ग . . .इन सबके बीच सबसे बुरा ख़ुद मै ही लगता हूँ जो ये सब देख कर भी कुछ नही कर पा रहा है........शाम को बुढिया नही मिलती है. . .शायद सबने मिल कर उसे भगा दिया है. . .कही फेंक दिया गया हो. . .मेरी हिम्मत नही होती कि मै पता भी कर सकूँ..............


. . . आज सुबह जब NGO जाता हूँ तो लगभग 40 बच्चे इंतज़ार कर रहे होते हैं . . .और अन्दर जाते ही ,उनमे से कई,आकर गले लग जाते हैं . . .अच्छा महसूस होता है. . कल तक सारी दुनिया ही बुरी दिख रही थी,वैसी लगती नही है. . . फ़िर से मुझे मेरे होने का अहसास होता है. . . कही तो कुछ अच्छा है......

किसी ने ठीक ही कहा है.....

"जितनी बुरी कही जाती है,उतनी बुरी नही है दुनिया
बच्चो के स्कूल में शायद तुमसे मिली नही है दुनिया"

.......शायद...हाँ शायद ही तो....................


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Written for my guilt....for my self.

7 comments:

Abhik said...

Wonderful portrayal of the cycle of feelings which we go through some time or the other. Would love to comment more on this but can't simply because it's made me think about myself now.

kunalc said...

...many old men n women in our country share a similar condition as the old woman u have mentioned..... sometimes i wonder how one can leave ther parents/relatives to wander n die like this...i wonder wat kind of society i am living in which doesnt give a damn about the less fortunate ones....its inhuman....
but then i myself m part of this society....and yes i do share the guilt of urs....

Ashish.612 said...

m speechless

upasanaa said...

i believe we all do what u have been doing.. think what u have been thinking and feel what u do.. the burden of the bare truth that we can't always do what we wish to and things r never the way we want them to be.. i or many of us can't do more than saying.."I understand.. and Sometmes same here"

atleast you have a source of finding an escape from this burden and feel a bit better and ligher .. Lucky u!!

Smart Indian said...

सही कहा, अच्छाई पूरी तरह से मारी नहीं है - बस बेबस पडी है.

Anonymous said...

Awesome..the way you have described the feelings and scene.You made me feel as a character..All those scenes u described were running in front of my eyes as they r happening to me.Pretty true---we all should be guilty for this....Madhusudan

Kunal Shah said...

Well 'indifference' yes I can relate to it as its part of me...

You are such a pure hearted person, hats off to you Saurabh... Luv the way you are...

Be the same...